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जन औषधि केंद्रों पर जीवनरक्षक दवाओं का संकट, मरीजों पर महंगी दवाओं का बोझ,जिम्मेदार कौन?

आई विटनेस न्यूज 24, सोमवार 21 अप्रैल,प्रधानमंत्री जन औषधि योजना के अंतर्गत खोले गए जन औषधि केंद्रों की हालत डिंडोरी जिले में बद से बदतर होती जा रही है। इस महत्वाकांक्षी योजना का उद्देश्य आमजन को सस्ती और गुणवत्तापूर्ण जेनेरिक दवाइयां उपलब्ध कराना था, लेकिन आज यह योजना दम तोड़ती नजर आ रही है।


करीब छह महीने पूर्व शुरू हुए जन औषधि केंद्रों पर खांसी, बुखार, जुकाम और शुगर जैसी आम बीमारियों की दवाएं तो मिल रही हैं, लेकिन जीवनरक्षक दवाओं का भारी अभाव है। मरीजों को मजबूरी में महंगी ब्रांडेड दवाएं निजी मेडिकल स्टोर से खरीदनी पड़ रही हैं, जिससे उनके ऊपर आर्थिक बोझ बढ़ता जा रहा है।

जानकारी के अनुसार जन औषधि केंद्रों पर लगभग 1200 प्रकार की जेनेरिक दवाएं उपलब्ध होनी चाहिए, लेकिन वर्तमान में इनमें से आधे से भी कम दवाएं मौजूद हैं। और जो दवाएं उपलब्ध हैं, वे अधिकांश सरकारी अस्पतालों में पहले से ही मिल जाती हैं।

केंद्र संचालक ने बताया कि शुभारंभ के समय 286 दवाएं केंद्र को मिली थीं, लेकिन अब वे भी खत्म होती जा रही हैं। इसके बाद दूसरी खेप में दवाएं नहीं आईं। संचालक ने बताया, "हमने करीब 3-4 माह पूर्व 150 दवाइयों की मांग सीएमएचओ, जिला चिकित्सालय को भेजी थी, लेकिन न तो दवाओं की आपूर्ति हुई और न ही संचालन के लिए जरूरी सॉफ्टवेयर ही उपलब्ध कराया गया। सीएमएचओ का कहना है कि जब तक सॉफ्टवेयर नहीं आता, दवाओं का ऑर्डर नहीं हो सकता।"

स्थिति यह है कि रोजाना सैकड़ों जरूरतमंद मरीज बिना दवा लिए ही केंद्र से लौट जाते हैं। यह हालात प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा शुरू की गई इस जनकल्याणकारी योजना की मूल भावना पर सवाल खड़े करते हैं।

स्थानीय नागरिकों का कहना है कि जिले के कुछ प्रभावशाली केमिस्टों के दबाव के चलते ही शायद इस योजना को जानबूझकर कमजोर किया जा रहा है। अगर यही स्थिति बनी रही, तो आम जनता को सस्ती और असरदार दवाओं की सुविधा से वंचित रहना पड़ेगा।

इस बीच, जिला चिकित्सालय डिंडोरी की लापरवाहियों की फेहरिस्त भी लंबी होती जा रही है। कई महीनों से डीप फ्रीजर बंद पड़ा है। हाल ही में एक परिवार को मृतक के शव को रखने की जरूरत पड़ी, लेकिन कोई व्यवस्था नहीं मिली, और अंततः कलेक्टर को स्वयं हस्तक्षेप करना पड़ा।

ऐसे में अब देखना यह होगा कि जिला प्रशासन और स्वास्थ्य विभाग कब जागता है और जन औषधि योजना को फिर से पटरी पर लाने के लिए कौन से ठोस कदम उठाता है। शायद अब इस योजना की दुरुस्ती के लिए भी कलेक्टर महोदया को खुद मैदान में उतरना पड़ेगा।


 

Ashish Joshi

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