ओमप्रकाश परस्ते की रिपोर्ट
आई विटनेस न्यूज 24, मंगलवार 25 फरवरी,जबलपुर संभाग के पीएचई विभाग के उमरिया और मंडला के कार्यपालन यंत्रियों की काली करतूते पानी पिलाना तो पुण्य का काम होता है परंतु शायद पीएचई विभाग के कुछ अधिकारियों को पाप करने में ज्यादा रुचि रही है और वो सिर्फ अपनी जेबें भरने में लगे रहे। अगर उनके यह पाप देखना है तो ठोडी ग्राम उमरिया जिले जाओ जहां जल जीवन मिशन की महत्वाकांक्षी योजना बनने के बावजूद लोग तालाबों से गंदा पानी पीने को मजबूर है और नहीं तो खिसरारू ग्राम मंडला जिले में होकर आओ जहां योजना के बावजूद लोग कुएं से ला लाकर वही अस्वच्छ पानी पीने को मजबूर हैं।
यह मामला पीएचई विभाग के मंडला कार्यपालन यंत्री और उमरिया कार्यपालन यंत्री अमित कुमार साह जी से जुड़ा है। पिछले कुछ महीनों से जल जीवन मिशन की विफलताओं के कारण ये दोनों जिले चर्चे में रहे हैं।पर उससे भी ज्यादा सनसनीखेज मामला ये है कि ये अधिकारी योजनाओं की जानकारी सूचना के अधिकार के तहत देने से बच रहे है।इस अधिकार के तहत कार्यपालन यंत्री मंडला एवं उमरिया से जानकारी मांगी गई थी जिसके एवज में प्रार्थीयों ने चालान संख्या 051/9999999/0070/01/25/013045 एवं 051/9999999/0215/01/25/000046 राशि जमा करवा ली गई है परंतु मंडला कार्यपालन यंत्री के द्वारा एक ही बात बोली जा रही है कि अभी दस्तावेज तैयार नहीं हुए हैं और तो और उमरियाके प्रभारी कार्यपालन यंत्री अमित साह जीतो एक कदम आगे निकल कर प्रार्थी को दूरभाष के माध्यम से ऑफिस बुलवाते है फिर पूरे दिन इंतेज़ार करवाने के बाद "कार्यपालन यंत्री जी के व्यस्तता के कारण अभी दस्तावेज तैयार नहीं हुए" जैसा जवाब दिया जाता है। वैसे भी आरटीआई की जानकारी न देने का अमित साह जी का पहला मामला थोड़े न ही है, इससे पूर्व मऊगंज में अपने कार्यपालन यंत्री के प्रभार के दौरान भी आरटीआई नियमों के तहत जानकारी न देने कार्य कर चुके है और शासन की तरफ से दंड स्वरूप उन्हें कार्यपालन यंत्री के प्रभार से हटा कर सहायक यंत्री के मूल पद पर पदस्थ कर दिया गया था।
इस घटना में एक रोचक तथ्य ये भी है कि इन दोनों कार्यपालन यंत्रियों से संबंधित एक कुछ योजनाओं पर वित्तीय अनियमितता की वजह से ईओडब्ल्यू की जांच भी प्रक्रियाधीन है। अब यक्ष प्रश्न यह है कि ये अधिकारी किन वजहों से आरटीआई की जानकारी नहीं दी जा रही है कही ये लोग अपने भ्रष्टाचार को तो नहीं छुपाना चाह रहे है?? या इन लोगों को डर है कि इनके काले कारनामे जग जाहिर हो जाएंगे एवं शासन के द्वारा जांच का विषय बनेंगे। अगर योजनाओं का हल ऐसा है और अधिकारियों का रवैया इस तरीके का है तो क्यों न शासन के द्वारा उक्त मामले एवं योजनाओं की शासन द्वारा किसी निष्पक्ष एजेंसी द्वारा जांच करवाई जाए जिससे इन लोगों के भ्रष्ट रवैए पे अंकुश लगे और सच बाहर आ सके।