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रानी अवंती बाई की कुछ अनसुनी कहानी, उनके वंशज की जुवानी


 राजेश ठाकुर की रिपोर्ट

आई विटनेस न्यूज 24, सोमवार 28 अक्टूबर,जिला मुख्यालय से महज 13 किलोमीटर दूर स्थित वीरांगना शहीद रानी अवंती बाई का शहीद स्थल बालपुर (शाहपुर) जिससे जिले के लगभग सभी लोग परिचित हैं, किंतु वीरांगना शाहिद रानी अवंती बाई के जीवन से संबंधित कुछ अनसुनी घटनाएं,जिनसे लोग बाग आज भी अपरिचित है, रानी अवंती बाई के वंशज कुंवर होशियार सिंह ठाकुर के द्वारा बताया गया कि अमर शहीद वीरांगना रानी अवंती बाई का अंग्रेजों के विरुद्ध अंतिम युद्ध देवहारगढ़ के जंगल में लड़ा गया था, उस समय वीरांगना रानी अवंती बाई देवहार कुंड गई थी, जहां अंग्रेजों से घिर गई,फल स्वरुप उनका घोड़ा अपनी सूझबूझ एवं साहस के साथ रानी अवंती बाई को लेकर रानी दहार में कूद गया और सीधे देवहारगढ़ के जंगल में निकला था! शाहपुर तालाब में दो शिव मंदिर स्थापित थे, एक मंदिर में पत्थर की चक्की थी,जो की अमावस्या एवं पूर्णिमा को स्वयं चलने लगती थी,यदि बीच में कभी अपने आप चक्की चलती थी, तो दुर्भिक्ष एवं अकाल पड़ने के संकेत माने जाते थे, चक्की वाला मंदिर टूट गया है और गिरे हुए शिव मंदिर के अवशेष पत्थर आदि आज भी तालाब एवं आम के वृक्ष के आस-पास मौजूद है,


शाहपुर में रानी के वंशजों के नाम पर एक तालाब है, जिसका उपयोग अन्य ग्राम के निवासी एवं शाहपुर ग्राम के निवासी करते आ रहे हैं, उस तालाब में दो ही शिव मंदिर थे, इसके अलावा वहां कोई मंदिर नहीं था, तालाब के मंदिर की चक्की से एवं देवदारगढ़ से भी अजीब आवाज़ आया करती थी, इसका जिक्र भी वंशजों के द्वारा किया जाता है, वंशजों के अनुसार हमारी रानी मां की उम्र 100 वर्ष है, जो जीवित है! पूर्व वर्षों में वीरांगना द्वारा देवहारगढ़ में देव स्थापित किए गए थे, जिन मूर्तियों को आसामाजिक तत्वों द्वारा चोरी कर बाहर भेज दिया गया,ऐसा रानी बुढार ग्राम के वृद्ध जनों के द्वारा बतलाया गया था, जिसकी जानकारी वंशजों को है, कुछ मूर्ति एवं सामग्री जांच उपरांत बरामद कर शहीद स्थल बालपुर संग्रहालय में संरक्षित किया जा सकता है, रानी कुंड एवं देवहार गढ़ वन परिक्षेत्र को वीरांगना के अंतिम युद्ध स्थल होने के कारण वीरांगना रानी अवंती बाई के नाम से संरक्षित किया जाना आवश्यक है, वीरांगना अंतिम युद्ध करते हुए दुश्मनों से घिरने के बाद शाहपुर की ओर बढ़ी एवं तालाब स्थित शिव मंदिर में अंतिम पूजन उपरांत बालपुर में स्वयं के कटार से अपने प्राणों की आहुति देकर शहीद हो गई,उक्त कुछ तथ्य इतिहासकारों की जानकारी में नहीं थे, यह तो सिर्फ उनके वंशज ही जानते हैं! अगर शासन प्रशासन इन पहलुओं की बारीकी से पुरातत्व विभाग से जांच कराए,तो आने वाले दिनों में इतिहास के पन्नों में जरूर कुछ बदलाव होंगे, एवं डिंडोरी जिले के लिए यह गौरव की बात होगी!