जिले में लगातार स्वास्थ्य से खिलवाड़ कर रहे होटल/गुमटी संचालक, डिस्पोजल का उपयोग कर बांट रहे बीमारी - i witness news live
Breaking News
Loading...

TOP NEWS

जिले में लगातार स्वास्थ्य से खिलवाड़ कर रहे होटल/गुमटी संचालक, डिस्पोजल का उपयोग कर बांट रहे बीमारी


 गणेश पाण्डे की रिपोर्ट

आई विटनेस न्यूज 24, बुधवार 23 अक्टूबर       डिन्डोरी जिला मुख्यालय में ज्यादातर होटलों/गुमटिओं में खुले आम डिस्पोजल में चाय काफी जहर परोसा जा रहा है । इतना ही नहीं प्राय सभी शासकीय कार्यालय भी स्वास्थ सम्बन्धी समस्याओं को नजर अंदाज करते हुए धड़ल्ले से प्लास्टिक डिस्पोजल का उपयोग करते देखे जा सकते हैं ।

दरअसल जिस डिस्पोजल में हम लोग चाय काफी गरम तरल पदार्थ पीते हैं तो इसका मतलब हम जहरीला पदार्थ पी रहे हैं । कोरोना काल के दौरान डिस्पोजल से चाय कॉफी की परंपरा चल पड़ी जो आज भी नहीं थम रही ।

डिस्पोजेबल कप में चाय और कोई भी गर्म चीज पीने से सेहत को काफी नुकसान पहुंच सकता है. इसमें जो केमिकल इस्तेमाल होता है, उससे कैंसर जैसी खतरनाक बीमारियां हो सकती हैं.

आजकल स्टील या कांच की गिलास या बर्तन की जगह डिस्पोजेबल कप ने ले ली है. अब पानी, चाय, कॉफी या कोई भी ड्रिंक्स पीने में डिस्पोजेबल कप (Disposable Cup) का ही इस्तेमाल हो रहा है. ऑफिस से लेकर बड़े रेस्टोरेंट तक इन्हीं कप का उपयोग हो रहा है. लेकिन क्या आप जानते हैं कि डिस्पोजेबल कप सेहत को प्रभावित कर सकती है. चलिए जानते हैं इससे होने वाले नुकसान और


डॉक्टर की सलाह...

डॉक्टरों का कहना है कि डिस्पोजेबल कप प्लास्टिक और केमिकल का इस्तेमाल कर बनाया जाता है. अगर लंबे समय तक इसका यूज कर रहे हैं तो ये कैंसर का कारण बन सकता है. डॉक्टरों ने बताया, डिस्पोजेबल कप में बिसफेनोल और बीपीए जैसे केमिकल पाए जाते हैं. जो काफी खतरनाक केमिकल हैं. जब इन कप में चाय या गर्म पानी पीते हैं तो इसमें मौजूद केमिकल इनमें घुल जाते हैं और ये केमिकल पेट तक पहुंच जाते हैं, जिससे कैंसर का जन्म हो सकता है.

प्रोफेसर सुधा गोयल ने कहा, ‘हमारे अध्ययन के अनुसार एक पेपर कप में रखा 100 मिलीलीटर गर्म तरल (85 - 90 ओसी), 25,000 माइक्रोन-आकार (10 माइक्रोन से 1000 माइक्रोन) के सूक्ष्म प्लास्टिक के कण छोड़ता है और यह प्रक्रिया कुल 15 मिनट में पूरी हो जाती है। इस प्रकार यदि एक औसत व्यक्ति प्रतिदिन तीन कप चाय या कॉफी पीता है, तो वह मानव आंखों के लिए अदृश्य 75,000 छोटे सूक्ष्म प्लास्टिक के कणों को निगलता है।’

शोधकर्ताओं ने शोध के लिए दो अलग-अलग प्रक्रियाओं का पालन किया- पहली प्रक्रिया में, गर्म और पूरी तरह स्व-च्छ् पानी (85-90 6.9C; पीएच ~ 6.9) को डिस्पोजेबल पेपर कप में डाला गया और इसे 15 मिनट तक उसी में रहने दिया गया। इसके बाद जब इस पानी का विश्लेगषण किया गया, तो पया गया कि उसमें सूक्ष्म-प्लास्टिक की उपस्थिति के साथ-साथ अतिरिक्त आयन भी मिश्रित हैं। दूसरी प्रक्रिया में, कागज के कपों को शुरू में गुनगुने (30-40 डिग्री सेल्सियस) स्वकच्छक पानी (पीएच / 6.9) में डुबोया गया और इसके बाद, हाइड्रोफोबिक फिल्म को सावधानीपूर्वक कागज की परत से अलग किया गया और 15 मिनट के लिए गर्म एवं स्वोच्छो पानी (85-90 डिग्री सेल्सियस; पीएच ~ 6.9) में रखा गया। इसके बाद इस प्लास्टिक फिल्मक के गर्म पानी के संपर्क में आने से पहले और बाद उसमें आए भौतिक, रासायनिक और यांत्रिक गुणों में परिवर्तन की जांच की गई।

15 मिनट का समय तय किये जाने के बारे में बताते हुए प्रो. गोयल ने कहा कि एक सर्वेक्षण में उत्तरदाताओं ने बताया कि चाय या कॉफी को कप में डाले जाने के 15 मिनट के भीतर उन्होंउने इसे पी लिया था। इसी बात को आधार बनाकर यह शोध समय तय किया गया। सर्वेक्षण के परिणाम के अलावा, यह भी देखा गया कि इस अवधि में पेय अपने परिवेश के तापमान के अनुरूप हो गया।

ये सूक्ष्म प्लास्टिक आयन जहरीली भारी धातुओं जैसे पैलेडियम, क्रोमियम और कैडमियम जैसे कार्बनिक यौगिकों और ऐसे कार्बनिक यौगिकों, जो प्राकृतिक रूप से जल में घुलनशील नहीं हैं में, समान रूप से, वाहक के रूप में कार्य कर सकते हैं। जब यह मानव शरीर में पहुंच जाते हैं, तो स्वास्थ्य पर गंभीर असर डाल सकते हैं।

इस स्थिति से बचने के लिए क्या पारंपरिक मिट्टी के उत्पादों का डिस्पोजेबल उत्पा दों के स्था्न पर इस्ते माल किया जाना चाहिए, इस सवाल पर आईआईटी खड़गपुर के निदेशक प्रो. वीरेंद्र के तिवारी ने कहा, “इस शोध से यह साबित होता है कि किसी भी अन्यई उत्पाेद के इस्तेदमाल को बढ़ावा देने से पहले यह देखना जरूरी है कि वह उत्पा द पर्यावरण के लिए प्रदूषक और जैविक दृष्टि से खतरनाक न हों। हमने प्लास्टिक और शीशे से बने उत्पा दों को डिस्पोजेबल पेपर उत्पाृदों से बदलने में जल्दलबाजी की थी, जबकि जरूरत इस बात की थी कि हम पर्यावरण अनुकूल उत्पादों की तलाश करते। भारत पारंपरिक रूप से एक स्थायी जीवन शैली को बढ़ावा देने वाला देश रहा है और शायद अब समय आ गया है, जब हमें स्थिति में सुधार लाने के लिए अपने पिछले अनुभवों से सीखना होगा।”

विगत दिनों मध्य प्रदेश के इंदौर शहर में पर्यावरण और जन स्वास्थ्य को लेकर एक बड़ा निर्णय लिया गया है जिसमें चाय दुकान संचालक डिस्पोजल कप में चाय नहीं बेच सकेंगे। इंदौर के महापौर पुष्यमित्र भार्गव ने चाय दुकान संचालकों को तीन दिन का सख्त अल्टीमेटम दिया है जिसके तहत उन्हें अपनी दुकानों से तत्काल प्रभाव से सभी प्रकार के डिस्पोजल हटाने होंगे यदि इस निर्देश का पालन नहीं किया गया तो संबंधित दुकानदारों के खिलाफ चलानी कार्यवाही की जाएगी यह कदम शहर के नागरिकों के स्वास्थ्य और सेहत को ध्यान में रखते हुए उठाया गया है। 

मनोरोग विशेषज्ञ डॉक्टर निधि बुखारिया ने बताया कि डिस्पोजल कप के अंदर प्लास्टिक की कोटिंग होती है जो चाय या किसी भी गर्म तरल पदार्थ के संपर्क में आने में घुल जाती है और प्लास्टिक कोटिंग शरीर के अंदर जाने पर कैंसर जैसी घातक बीमारियों का कारण बन जाती है शहर में बढ़ते कैंसर के मामलों के बीच इंदौर महापौर का यह निर्णय एक महत्वपूर्ण जनहित का मुद्दा बना हुआ है।