नर्मदा जयंती माघ के महीने में जब शुक्ल पक्ष की सप्तमी आती है, उस दिन को इस पर्व के रूप में मनाया जाता है,
विश्व मे एक मात्र नदी है जिसकी परिक्रमा की जाती है।इस लिये नर्मदा को प्रदक्षिणा भी कहा जाता है।
ईश्वर दुबे की रिपोर्ट,
आई विटनेस न्यूज 24, शनिवार 28 जनवरी,हमारे देश में बहुत सी पवित्र नदियाँ हैं। जो कि पवित्रता का प्रतीक हैं। प्रत्येक पवित्र नदी का अपना विशेष महत्व, इतिहास एवम कहानी है। भारत में मान्यता है कि पवित्र नदियों में स्नान करने से कष्ट, दुख, रोग, वा पाप नष्ट हो जाते हैं। इन्हीं में भारत के मध्य भाग में पूर्व दिशा से पश्चिम की ओर प्रवाहित होने वाली माँ नर्मदा जो कि मध्य प्रदेश और गुजरात की जीवन दायिनी है। नर्मदा जी की पूजा पूरे भारत में की जाती है। नर्मदा जी का उद्गम अमरकंटक के मेकल पर्वत से हुआ है अतः उन्हें मेकल कन्या भी कहा जाता है। जिसका विस्तृत विवरण स्कंद पुराण के रेवा खण्ड मिलता है। माँ नर्मदा के पावन तट पर अनेकों तीर्थ स्थल है। जो जन मानस की आस्था का केन्द्र है। और हमारे जीवन में विशेष महत्व रखते हैं। नर्मदा उद्गम से मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र, गुजरात, से लगभग 1310किलोमीटर की दूरी से प्रवाहित होकर खंभात की खाड़ी से समुद्र में मिल जाती है। भारतीय परंपराओं में नर्मदा परिक्रमा का खास महत्व है। प्रत्येक वर्ष लाखों की संख्या में श्रद्धालु जन नर्मदा परिक्रमा कर पुण्य लाभ अर्जित करते हैं। कूर्म पुराण, पद्म पुराण, मत्स्य पुराण के अनुसार नर्मदा दर्शन मात्र से पुण्य प्रदान करती है। मध्य प्रदेश को पर्यटन, पर्यावरण, और पवित्र जल, की दृष्टिकोण से भी माँ नर्मदा महत्व पूर्ण बनाने कार्य करती हैं उनके उद्गम को लेकर अनेकों पौराणिक कथाएं हैं। मां नर्मदा को रेवा के नाम से भी जाना जाता है। सभी पवित्र नदियों को स्वच्छ बनाऐ रखना हम सभी की नैतिक जिम्मेदारी है।