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डिंडोरी जिला चिकित्सा मैं राष्ट्रीय विश्व क्षय रोग दिवस मनाया गया

भीमसेन ठाकुर की रिपोर्ट
आई विटनेस न्यूज 24, गुरुवार 24  मार्चडिंडोरी,जिला चिकित्सलय डिंडोरी में आज विश्व क्षय रोग दिवस मनाया गया। क्षय रोग यानी टीबी फेफड़ों का एक गंभीर संक्रमण है,जो एक जीवाणु के कारण होता है,जो खांसने या छींकने पर हवा में छोड़ी गई छोटी बूंदों से फैलता है। टीबी के घातक स्वास्थ्य, वित्तीय और सामाजिक परिणामों के बारे में लोगों के बीच जागरूकता बढ़ाने के लिए हर साल 24 मार्च को विश्व क्षय रोग दिवस (विश्व टीबी रोग दिवस) मनाया जाता है। टीबी एक संक्रामक रोग है, जो ,सीधे आपके फेफड़ों को प्रभावित करता है और संक्रमित व्यक्ति के छींकने या खांसने से फैलता है। हालांकि टीबी का रोकथाम और इलाज भी होता है। इसलिए विश्व टीबी दिवस बीमारी से प्रभावित व्यक्तियों को ठीक करने और इससे बचने के उपायों पर जोर पर देता है।
जानें 24 मार्च को बी क्यों मनाया जाता है टीबी दिवस।
टीबी को ट्यूबरकुलोसिस, क्षय रोग, तपेदिक आदि नामों से भी हिंजी में जाना जाता है। ऐसा माना जाता है कि ट्यूबरकुलोसिस शब्द 1834 में जोहान शोनेलिन द्वारा गढ़ा गया था। सीडीसी के अनुसार, यह संक्रमण लगभग 3 मिलियन वर्षों से है। 1700 के दशक में, रोगियों की पीली उपस्थिति के कारण टीबी को "सफेद प्लेग" कहा जाता था। 24 मार्च 1882 को डॉ रॉबर्ट कोच ने टीबी पैदा करने वाले बैक्टीरिया की खोज की थी। एक सदी बाद, उसी दिन विश्व टीबी दिवस मनाया जाने लगा।
टीबी पैदा करने वाले बैक्टीरिया से संक्रमित कई लोगों में लक्षण नहीं दिखते।
लक्षण वाले लोग खांसी की शिकायत करते हैं जो दो या तीन सप्ताह से अधिक समय तक रहती है। टीबी के लक्षण हैं, खांसी, खांसी में खून का आना, गाढ़ा बलगम होना, रात को पसीना आना, थकान या कमजोरी महसूस होना, वजन और भूख कम हो जाना, बुखार होना जैसे आम लक्षण है।
जानें टीबी दिवस का महत्व
टीबी यानी ट्यूबरकुलोसिस संक्रामक रोग के बारे में जागरूकता बढ़ाने और वैश्विक टीबी महामारी को समाप्त करने के प्रयासों को तेज करने के लिए हर साल 24 मार्च को विश्व टीबी दिवस मनाया जाता है। 24 मार्च 1882 में डॉ रॉबर्ट कोच ने घोषणा की कि उन्होंने ट्यूबरकुलोसिस का कारण बनने वाले जीवाणु की खोज की है।
जानें टीबी दिवस 2022 की थीम
विश्व टीबी दिवस 2022 की थीम है, ''टीबी को समाप्त करने के लिए निवेश करें। जीवन बचाएं।'' ये थीम टीबी के खिलाफ लड़ाई को तेज करने और वैश्विक नेताओं द्वारा किए गए टीबी को समाप्त करने के लिए प्रतिबद्धताओं को प्राप्त करने के लिए संसाधनों को निवेश करने की तत्काल आवश्यकता को बताता है। डब्ल्यूएचओ (विश्व स्वास्थ्य संगठन) के अनुसार, कोरोना महामारी की वजह से टीबी को लेकर पिछले कुछ सालों में उचित प्रयास नहीं किए गए हैं।
जानें टीबी डे का इतिहास
सीडीसी के अनुसार, टीबी लगभग 3 मिलियन वर्ष पुरानी बीमारी है और विभिन्न सभ्यताओं में इसके अलग-अलग नाम थे। टीबी को प्राचीन ग्रीस में "फथिसिस", प्राचीन रोम में "टैब" और प्राचीन हिब्रू में "स्केफेथ" कहा जाता था। 1800 के दशक में टीबी को "खपत" के रूप में भी जाना जाता था। मध्य युग के दौरान, गर्दन और लिम्फ नोड्स के टीबी को "स्कोफुला" कहा जाता था। स्कोफुला को फेफड़ों में टीबी से अलग बीमारी माना जाता था।
डब्ल्यूएचओ के अनुसार, "टीबी दुनिया के सबसे घातक संक्रामक बीमारियों में से एक है। हर दिन लगभग 4000 लोग टीबी से अपनी जान गंवाते हैं और करीब 28,000 लोग इस रोकथाम योग्य और इलाज योग्य बीमारी से बीमार पड़ते हैं। टीबी से निपटने के वैश्विक प्रयासों ने साल 2000 से अनुमानित 63 मिलियन लोगों की जान बचाई है।"
वही कार्यक्रम  में मुख्य रूप से जिला चिकित्सा अधिकारी आर. एस. मरावी,सिविल सर्जन डिंडोरी डी.पी.एम. विक्रम सिंह, सहित पैरामेडिकल कॉलेज के सभी छात्रों सहित जिला चिकित्सालय डिंडोरी के समस्त स्टाफ मौजूद रहा।

Ashish Joshi

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