जिला मुख्यालय के जागरूक युवा
धीरज तिवारी, सम्यक् जैन और मनन अग्रवाल ने पत्र के माध्यम से अपनी दलील राष्ट्रीय महिला आयोग की अध्यक्ष के समक्ष प्रस्तुत की। इन्होंने दलील में कहा कि -
कोई मेडिकल सुविधाएं किसी भी गंभीर रूप से बीमार या आपातकालीन रोगी को इलाज के लिए मना नहीं कर सकती हैं। इस तरह के इंकार को भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत स्वास्थ्य के अधिकार के उल्लंघन के रूप में माना जाता है।
जिला कोविड केयर केंद्र, डिंडौरी मध्य प्रदेश द्वारा एक महिला मरीज के साथ अपनाया गया लापरवाहीपूर्ण रवैया, जहां भर्ती कोविड महिला मरीज दर्द से तड़पती हुई फर्श पर दिखाई दे रही है उसको उचित चिकित्सा सुविधाओं के बिना छोड़ दिया गया था। चूंकि उसे तत्काल उपचार नहीं दिया गया था, इसलिए इससे उसकी जान चली गई। जो उसके मौलिक अधिकारों का घोर उल्लंघन है।
यह जिला अस्पताल के मामलों की स्थिति है, जब हम जिले के विभिन्न हिस्सों में स्थित अन्य छोटे अस्पतालों के बारे में सोचते हैं, तो यह अकल्पनीय है कि वहां की स्थिति क्या होगी। एक कल्याणकारी राज्य में, राज्य का यह दायित्व है कि वह अच्छे स्वास्थ्य के लिए निर्माण और स्थितियों की निरंतरता सुनिश्चित करे। लेकिन वर्तमान परिस्थिति इससे विपरीत है।
यह दैनिक आधार पर होने वाली कई घटनाओं में से एक है। जिला अस्पताल, डिंडोरी, मध्यप्रदेश के कोविड केयर सेंटर में औषधीय पेशेवरों के लापरवाह रवैये ने एक महिला की जिंदगी छीन ली, जो अनुच्छेद 19 और 21 के तहत परिकल्पित उसके मौलिक अधिकार का घोर उल्लंघन है। जिला अस्पताल, डिंडोरी के कोविड केयर सेंटर में वैधानिक शक्तियों के अनुसार यह दर्दनाक घटना होने पर निवेदन किया है कि उक्त मामले को संज्ञान में लेकर दोषियों पर कार्यवाही कर पीड़ित महिला के साथ न्याय करने की कृपा करें ।