यह देख दाभाडकर ने अपना बेड उस महिला के पति
को देने के लिए अस्पताल प्रशासन से गुजारिश कर दी।
उन्होंने कहा, 'मैंने अपनी जिंदगी जी ली है। मेरी उम्र
अब 85 साल है। इस महिला का पति युवा है। उस पर
परिवार की जिम्मेदारी है। इसलिए उसे मेरा बेड दे दिया
जाए।'
अस्पताल से लौटने के 3 दिन बाद निधन हो गया
दाभाडकर की गुजारिश को मानते हुए अस्पताल
प्रशासन ने उनसे एक कागज पर लिखवाया, 'मैं अपना
बेड दूसरे मरीज के लिए स्वेच्छा से खाली कर रहा
हूं।' इसके बाद दाभाडकर घर लौट गए।लेकिन उनकी
तबीयत बिगड़ती गई और 3 दिन बाद निधन हो गया।
दाभाडकर को कुछ दिन पहले कोरोना हुआ था। उनका
ऑक्सीजन लेवल 60 तक गिर गया था। उनके दामाद
और बेटी उन्हें इंदिरा गांधी शासकीय अस्पताल ले गए।
वहां बड़ी मशक्कत के बाद बेड मिला। लेकिन दाभाडकर
अस्पताल से घर लौट आए ताकि एक युवा को बेड मिल
सके।
बच्चों में चॉकलेट चाचा के नाम से मशहूर थे दाभाडकर
उनकी परिजन शिवानी दाणी-वखरे ने बताया कि
दाभाडकर बच्चों में चॉकलेट बांटते थे। इसलिए बच्चे
उन्हें चॉकलेट चाचा कहते थे। वही चॉकलेट की मिठास
उनके जीवन में थी। इसीलिए अंतिम समय भी वे सेवा के
यज्ञ में समिधा बने।